वो महिला जिन्होंने चुपचाप बदल दी भारत की अर्थव्यवस्था — अब नहीं रहीं! 2025


📌 प्रस्तावना

भारत की अर्थव्यवस्था को दिशा देने वाले कई नाम सामने आते हैं, पर कुछ लोग कैमरे से दूर रहकर भी नीति निर्माण की रीढ़ बन जाते हैं। डॉ. राधिका पांडे उन्हीं में से एक थीं — एक ऐसी महिला अर्थशास्त्री जिनका प्रभाव भारत की मौद्रिक, राजकोषीय और वित्तीय नीतियों पर गहराई से पड़ा, लेकिन आम जनता तक उनका नाम बहुत कम पहुंचा।

उनका असमय निधन 28 जून 2025 को हुआ, जिससे नीति जगत और शिक्षाविदों के बीच गहरा शोक फैल गया।


🎓 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. राधिका पांडे का जन्म एक साधारण लेकिन शिक्षित परिवार में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही पढ़ाई में गहरी रुचि दिखाई और अर्थशास्त्र को अपना जीवन बना लिया।

  • बी.ए. (अर्थशास्त्र)काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU)
  • एम.ए. और पीएच.डी. (अर्थशास्त्र)जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर

उनकी पीएच.डी. रिसर्च भारत की सार्वजनिक वित्तीय संरचना पर थी, जिसे NIPFP में हुए उनके कार्यों में स्पष्ट देखा जा सकता है।


🏛️ करियर की शुरुआत: शिक्षिका से नीति शोधकर्ता तक

शुरुआत में उन्होंने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जोधपुर में अध्यापन किया, लेकिन जल्द ही उनका झुकाव Public Policy Research की ओर हो गया।

वे NIPFP (National Institute of Public Finance and Policy) में वरिष्ठ अर्थशास्त्री बनीं, जहाँ उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक विभिन्न विषयों पर शोध किया।


🔍 मुख्य क्षेत्रों में योगदान

1. मुद्रास्फीति नियंत्रण (Inflation Targeting)

डॉ. पांडे ने RBI की मौद्रिक नीतियों को महंगाई लक्ष्य प्रणाली (Inflation Targeting Framework) के तहत वैज्ञानिक और डेटा-आधारित बनाने की दिशा में मार्गदर्शन किया। उनके शोध से पता चला कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए सिर्फ ब्याज दरें नहीं, बल्कि खाद्य मूल्य, आय वितरण, और वैश्विक तेल कीमतें भी नीतियों में शामिल होनी चाहिए।


2. सार्वजनिक ऋण प्रबंधन (Public Debt Management)

उनका शोध “Public Debt Management Agency” के स्वरूप और ज़रूरत पर आधारित था। उन्होंने दिखाया कि भारत को एक स्वतंत्र, पारदर्शी और पेशेवर ऋण प्रबंधन एजेंसी की आवश्यकता है, ताकि सरकारी कर्ज़ प्रणाली मजबूत हो और विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़े।


3. राजकोषीय अनुशासन (Fiscal Discipline)

डॉ. पांडे का मानना था कि भारत को सिर्फ योजनाएं नहीं, बल्कि एक वित्तीय अनुशासित सोच चाहिए। उन्होंने सरकार को सुझाव दिए कि कैसे बजट घाटा, सरकारी व्यय और उधारी को संतुलित किया जा सकता है।


✍️ MacroSutra: आम जनता के लिए सरल अर्थनीति

उन्होंने “ThePrint” नामक डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म पर MacroSutra नाम से एक कॉलम लिखा, जिसमें वे साप्ताहिक आर्थिक घटनाओं को सरल हिंदी/अंग्रेज़ी में आम जनता तक पहुँचाती थीं।

📝 उनके लोकप्रिय कॉलमों में शामिल थे:

  1. “क्या RBI की ब्याज दर कटौती से आपको फायदा होगा?”
  2. “बजट 2024 में क्या छूटा और क्या मिला?”
  3. “महंगाई और आपकी रसोई: क्या कहती है नीति?”
  4. “रुपया गिरा या डूबा? विदेशी मुद्रा नीति का सच”
  5. “GST का असली असर छोटे व्यापारियों पर”

उनकी शैली सरल, तथ्यात्मक और एकदम सटीक होती थी — जिससे छात्र, शिक्षक और आम नागरिक सब लाभान्वित होते थे।


📊 उनके शोध और नीतिगत प्रभाव

विषययोगदान
Inflation Targetingमौद्रिक नीति में डेटा आधारित सुधार
Fiscal Frameworkबजट घाटे और खर्च में पारदर्शिता
Public Debtस्वतंत्र एजेंसी की आवश्यकता पर रिपोर्ट
Financial Sector ReformNBFC और बैंकों की नीतियों पर सुझाव
Macro Policy Impactअंतरराष्ट्रीय नीति घटनाओं का भारत पर असर

👩‍💼 भारत की महिला अर्थशास्त्रियों में विशेष स्थान

जहाँ एक ओर नीति निर्माण में पुरुषों का बोलबाला रहा है, वहीं डॉ. राधिका पांडे ने शांति और गहराई से नीति निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित किया। वे इला पटेल, जयती घोष जैसी अन्य वरिष्ठ महिला अर्थशास्त्रियों की कड़ी में एक सशक्त नाम थीं।


🕯️ उनका असमय निधन और सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं

28 जून 2025 को उनके निधन की खबर सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैली।

प्रमुख व्यक्तित्वों की श्रद्धांजलि:

  • Raghuram Rajan: “A silent reformer. Her insights shaped RBI’s thinking deeply.”
  • Nirmala Sitharaman: “Her contributions to fiscal policy were invaluable. A huge loss.”
  • Shekhar Gupta (ThePrint): “MacroSutra will not be the same again without Radhika.”

💡 उनके अंतिम लेख की पंक्तियाँ

“नीति कोई एक व्यक्ति तय नहीं करता, पर एक व्यक्ति की समझ से वह गलत या सही दिशा ज़रूर ले सकती है।”
— डॉ. राधिका पांडे, MacroSutra, 15 जून 2025

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